बौद्धिक अपच केवल महाकुम्भ पर क्यों…?

संपादकीय

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

अतिबौद्धिकता की बदहज़मी से पीड़ित होकर केवल महाकुम्भ पर शाब्दिक वमन करने वाली एक कूपमण्डूक जमात इस समय देश में बहुत चिंतित गैंग बन चुकी है। मस्तिष्क में हुई रासायनिक उथलपुथल से केवल उन्हें करोड़ों स्नान करने श्रद्धालु, कई वाहन जो जाम में फंसे हैं, या फिर रेलवे स्टेशनों पर संगम जाने को प्रतीक्षित भीड़ ही नज़र आ रही है, शेष विश्व में अन्य धर्मों में जो हुआ वह सबसे अच्छा है।
महाकुम्भ 2025 सनातन आस्था का सबसे बड़ा आयोजन माना जा रहा है। यक़ीनन भगदड़ भी हुई, जनहानि भी हुई, जाम भी लगा, स्टेशनों पर भीड़ भी जमा हुई और यहाँ तक कि अब भी रेलवे या अन्य साधनों से प्रयागराज आवागमन और रहना सरल, सहज और सस्ता नहीं है, बावजूद सनातनियों की आस्था पर कोई बैरिकेड नहीं लगा है। लगातार लाखों लोग प्रयागराज पहुँच रहे हैं, स्नान कर रहे हैं, और महाकुम्भ का भी आनंद ले रहे हैं।
छद्म अतिबौद्धिक लाल सलाम गैंग को केवल अव्यवस्था ही तो दिख रही है, जबकि उम्मीद से 10 गुना लोग पहुँच गए, उसके बाद भी भयानक अव्यवस्था जैसा तो कुछ नज़र नहीं आया।
उस बौद्धिक अजीर्ण से पीड़ित गैंग को हज यात्रा के दौरान मची हुई भगदड़ पर लिखने या बोलने पर मानो साँप सूंघ जाता है। शब्द इतने जम जाते हैं कि मानो आका के विरुद्ध बोलने पर गर्दन पर छुरी दिखती है।
याद करो साल 2015 में हज यात्रा के दौरान मची भगदड़ तो सबसे भयानक थी। इस भगदड़ में हज़ारों लोगों की मौत हो गई थी। तब क्या मुँह में दही जम गया था?
साल 1990 में मक्का में हज के दौरान भगदड़ मच गई थी। दुष्परिणाम स्वरूप इस भगदड़ में क़रीब 1,400 लोगों की मौत हो गई थी। साल 2006 में भी हज के दौरान भगदड़ मच गई थी। इस भगदड़ में भी हज़ारों लोग बहत्तर हूरों से मिलने चले गए थे।
24 सितम्बर 2015 में तो मक्का के मीना में शैतान को पत्थर मारने के दौरान भगदड़ मच गई थी। इस भगदड़ में हज़ारों लोग बहत्तर हूरो से गले लग गए थे। तब यह (अति) बौद्धिक जमात कहाँ बिल में घुस गई थी!
आका के विरुद्ध एक शब्द न निकलना और सबसे सहिष्णु सनातनियों के लिए विधवा विलाप जारी रखना यह कौन-सी बीमारी है?
जब नाइजीरिया के उके में एक चर्च में भगदड़ हुई और सैंकड़ों लोगों की मौत हो गई थी, वहीं, लागोस में एक धार्मिक समारोह में भी कई लोगों की मौत हो गई थी। इसके अलावा ब्राज़ील और मैक्सिको में बड़े कैथोलिक जुलूसों में भीड़ प्रबंधन से जुड़ी समस्यायें देखी गयी हैं, जिसमें भगदड़ मचती रही है, तब यह रुदाली गैंग कहाँ बिलबिला रही थी?


आरोप-प्रत्यारोप के सभी मानक केवल सनातन धर्मावलंबियों पर और अन्य के समय होंठ सिल जाते हैं। कमाल का दोगलापन है इस बौद्धिकता के नाम पर हलकटपन से सनी गैंग में। जबकि यह हलकट गैंग अन्न तो भारत का खाती है किन्तु तनख्वाह विदेशों में बैठे आकाओं से पाती है। और भारतीयों के प्रति नमक हरामी का पूरा कार्य करके अपने आपको जँचाती है।
वाम के नाम पर काम परोसने वाली यही रुदाली गैंग के विरुद्ध अन्य धर्मों की तरह सनातनियों ने कोई सख़्त कार्यवाही नहीं की, इसी का लाभ उठाकर अपना मुँह सनातनियों की आस्था पर हमले करके चलाती है, अन्यथा नानी-दादी याद आ जाती अब तक तो।
ऐसी विषवमन गैंग का एक सूत्रीय कार्यक्रम केवल सनातन धर्मावलंबियों पर आकर इसलिए भी ठहर जाता है क्योंकि सनातन प्रशांत महासागर की तरह गहरा और उदार है। इस उदारता का नाहक फ़ायदा उठाने वालों के प्रति जिस दिन उदारता छोड़ दी, याद रखना लेने के देने पड़ जाएँगे।
अब आस्था के महोत्सव के समापन का दौर है, छुटपुट घटनाओं को छोड़ दें तो अब तक का सबसे बड़ा महोत्सव सानंद समापनता की ओर अग्रेषित है। और अब नई तैयारी है सिंहस्थ 2028 की उज्जैन में। प्रशासन मुश्तैद तो है और प्रयागराज से सबक लेकर उज्जैन की व्यवस्थाओं को अधिक सुलभ बनाएगा। पर रुदाली गैंग तब भी आपदा में शाब्दिक वमन का कारण खोजेगी। वह अपना काम करेगी, सनातनी अपना काम करेंगे। अंततः सबक सिखाते हुए आस्था बलवान रहे, यही ध्येय है।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
इन्दौर, मध्यप्रदेश

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