शिव

काव्य

हे! भोले भण्डारी दयानिधान
शंकर तुम हो, करुणानिधान
कंठ में रोका विष भी तुमने
तुम ही शंका का समाधान

तुम रुद्र रूप तुम हो सर्पधारी
तुम देव-असुर सबके नाथ
तुम कैलाशपति तुम गौरीशंकर
तुम ही भक्तों के भोलेनाथ

महेश हो तुम श्रेष्ठ जगत में
प्रलय रोकने वाले हो शंभु
अंधियारे को उजियाला करते
तुम महाकाल तुम विश्वनाथ

पिनाकी बन कर रहते मस्त
शशिशेखर तुम बनते निराले
विरुपाक्ष तुम भक्त वत्सल
गटक जाते तुम विष के प्याले

तुम शर्व हो श्रीकण्ठ तुम्हीं हो
त्रैलोकेश्वर नीलकंठ भगवान
शितिकण्ठ तुम शिवाप्रिये हो
उग्र तुम ही, तुम गंगाधर महान

सुरसुदन तुम ललाटाक्ष हो
कृपानिधि तुम परशुहस्त
तुम त्रिपुरांतक तुम वृषांक हो
तुम जटाधर तुम वृषभारुढ़

हे भोले, हे कृपानिधान
रक्षा करना जग की भगवान
हम हैं शरणागत प्रभु तेरे
तुम साथ सदा रहना भगवान।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
हिन्दीग्राम, इंदौर